बचपन की होली
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खूब खेली थी , होली हमने
गालिओ और चौबारों मे
खूब उडाये गुलाल हमने
और भरे थे रंग गुब्बारों मे
खूब जलाई होलिका हमने
अमावास की अँध्यारो मे
खूब मांगी थी होलिका की लकड़ी
हर घर और , हर द्वारो मे
जिस ने भी दी होली की लकड़ी
उनको हमने दी खूब बधाई थी
और जिस ने न दी
उसकी हमने , कुर्सी ,चौंकी , खटिया , कम्बल
और न जाने क्या -क्या ….रातो रात उड़ाई थी
चार मांगी हुई लकड़ी के नीचे
चालीस चोरी की लकड़ी जलाई थी
और सुबह सुबह ….उसी रख का धुल उडा -के , ढोल बजा के
हमने पड़ोसियों को खूब चिढाई थी
बचपन का वो होली का रंग
हर रंगों से गहरा है
हर रंगों से सुर्ख है ये
और हर रंगों से सुनहरा है
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खूब खेली थी , होली हमने
गालिओ और चौबारों मे
खूब उडाये गुलाल हमने
और भरे थे रंग गुब्बारों मे
खूब जलाई होलिका हमने
अमावास की अँध्यारो मे
खूब मांगी थी होलिका की लकड़ी
हर घर और , हर द्वारो मे
जिस ने भी दी होली की लकड़ी
उनको हमने दी खूब बधाई थी
और जिस ने न दी
उसकी हमने , कुर्सी ,चौंकी , खटिया , कम्बल
और न जाने क्या -क्या ….रातो रात उड़ाई थी
चार मांगी हुई लकड़ी के नीचे
चालीस चोरी की लकड़ी जलाई थी
और सुबह सुबह ….उसी रख का धुल उडा -के , ढोल बजा के
हमने पड़ोसियों को खूब चिढाई थी
बचपन का वो होली का रंग
हर रंगों से गहरा है
हर रंगों से सुर्ख है ये
और हर रंगों से सुनहरा है
मनीष कुमार
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